रहस्य धनुष का
श्री परशुराम जी के शिव धनुष को श्री राम द्वारा तोड़े जाने का रहस्य
इस पोस्ट में कही गई बात बहुत ही रोचक है. श्री राम जी के द्वारा तोड़ा गया धनुष का रहस्य और सीता विवाह से लेकर शिवजी के धनुष को तोड़ने की सारी घटना इस पोस्ट में दी गई है. मगर कुछ बाते ऐसी भी है जो आपको मालूम होना चाहिए. जब श्री राम जी ने माता सीता जी के स्वयंवर में धनुष तोडा तो उसके बीच कुछ रोचक घटना भी हुई थी. जब महाराजा जनक की उस सभा में दूर-दूर से आये राजा महाराजाओं से शिवजी के धनुष को तोड़ना तो क्या उठा भी नहीं पाए थे. तो ब्रम्हा ऋषि के साथ मिथिला नगरी में पहुचे श्री राम और लक्ष्मण जी ने सीता स्वयंवर में धनुष को तोडा. जब कोई उस धनुष को नहीं तोड़ पाया तो ब्रम्हा ऋषि की आज्ञा के अनुसार श्री राम जी ने धनुष तोड़ने का संकल्प लिया और धनुष तोड़ने के लिए आगे बढे. और जब धनुष के पास श्री राम जी पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले धनुष के चारो और गोल परिक्रमा की और सभी भगवानो के साथ महादेव भोलेनाथ शिव की आराधना की और हाथ जोड़कर जैसे ही उन्होंने धनुष को हाथ से छुआ.
जैसे उन्होंने धनुष को अपने एक हाथ से उठाया. तो पूरी सभा श्री राम को एक टक लगाकर देखते रहे और सभी राजा ये सोचने लगे की जो काम हम दौनो हाथ से नहीं कर पाए वो हमसे कम उम्र के बालक ने एक हाथ से इस धनुष को अपने एक हाथ से उठा दिया.
तभी श्री राम जी को लक्ष्मण जी कहते है कि भईया इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर इसे तोड़ दे. मगर श्री राम को एक बात ज्ञात थी कि ये धनुष भगवान भोले नाथ जी का है, और अगर उन्होंने ये धनुष तोड़ा तो पूरी पृथ्वी काँप उठेगी. यही बात को ध्यान में रखते हुए श्री राम जी ने लक्ष्मण जी को मन से इस बात की अनुभूति कराई की आप इस पृथ्वी का भार उठाते है, और हम इस धनुष को तोड़ेंगे तो पृथ्वी काँप उठेगी, आप इस पृथ्वी के भार वाहक है तो आपको इसकी जिम्मेदारी के साथ पृथ्वी को कश के पकड़ने रहना होगा. इसी बात को जब राम भगवान ने लक्ष्मण भगवान को बताया तो लक्ष्मण जी अपने स्थान पर खड़े हो गए और अपने पाँव के अंगूठे से पृथ्वी को दबा दिया और श्री राम को आज्ञा देदी की भगवन में तैयार हूँ आप अब इस धनुष को तोड़ दीजिये.
श्री राम जी ने ये बात जैसे ही सुनी उन्होंने धनुष पर उसी समय प्रत्यंचा चढाई और धनुष को एक झटके में ही तौड दिया. मगर दोस्तों रोचक बात यह है कि भगवान की लीला कुछ और थी. अभी भी उस सभा में कुछ और लीला होनी थी. धनुष को तोड़ने के बाद श्री राम और माता जगत जननी सीता माता की वरमाला के साथ स्वयंवर पूरा हुआ. मगर देखते ही देखते वहाँ भगवान श्री परशुराम जी आ गए और पूरी सभा में सभी लोग भय और दर के मारे सेहेम से गए. और जैसे ही भगवन परशुराम ने पूरी सभा में अपना पहला शब्द कहाँ की कौन है वो दुष्ट पापी जिसने भगवान शिव का धनुष तोड़ने की चेष्ट्ता की.
यह देखकर राजा जनक दर गए और उनके पास जाकर उनका आदर सत्कार आकर उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया और विनम्रता से परशुराम भगवान से कहा की आज मेरी बेटी का स्वयंवर का आयोजन किया गया है, और भगवान शिव के धनुष तो तोड़ने वाले व्यक्ति से मेरी पुत्री सीता का विवाह सम्पन्न किया गया. यह सुनकर परशुराम जी का गुस्सा तो जैसे सातवे आसमान पर चले गया, और उन्होंने राजा जनक को आदेश दिया कि उस पापी को मेरे सामने उपस्थित करो. तब श्री राम जी अपने गुरु ब्रम्हा ऋषि की आज्ञा से परशुराम जी के सामने प्रस्तुत हुए और हाथ जोड़कर कहाँ की आपका अपराधी आपके सामने है. मगर भगवान परशुराम जी के अहंकार को श्री राम जी ने भगवान विष्णु भगवान धनुष से पूर्व दिशा में विष्णु बाण को छोड़कर भगवान परशुराम के अहंकार को नष्ट कर दिया.