Earth Movement Information पृथ्वी की गतियाँ

Lavakush Kumar
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 जानिए पृथ्वी की गति और धरातल के मैदान पठार पर्वत जलप्रपात के बारे Earth Movement Information

पृथ्वी की गतियाँ Earth Changing एवं प्रमुख स्थलरुप (Movements of The Earth and Major Land forms) जानकारियाँ आपके लिए बहुत ही संक्षिप्त में पृथ्वी के आंतरिक और बाहिय रचना, मिट्टी, हवा, पर्वत, प्रकृति, जल सभी Earth Movement Information के बारे में जानिए.


प्रमुख स्थलरुप

पृथ्वी का धरातल अत्यधिक विषम तथा अनियमित है. इसमें अनेक प्रकार के धरातलीय स्वरूप तथा उच्चावच: जैसे पर्वत, पठार, मैदान, जलप्रपात, डेल्टा, पर्वत, शिखर आदि लक्षण पाए जाते है.


मैदान – पृथ्वी के धरातल मैदान की जानकारी Earth Movement Information

यह एक चौरस तथा निम्न क्षेत्र होता है, जिसका ढाल अत्यंत मंद होता है. नदियों तथा उनकी सहायक नदियों द्वारा लाये गए जलोढ़ से निर्मित मैदान अत्यधिक विस्तृत तथा बहुत उपजाऊ होते है. अतएव ये कृषि के लिए उत्तम है तथा अत्यधिक घने बसे है. भारतीय प्रायद्वीप का गंगा सिंधु का मैदान तथा चीन का विशाल मैदान विश्व के घने बसे प्रदेशों में गिने जाते है.


पठार (Plateau)

इनकी स्थिति पर्वतों तथा मैदानों के मध्य होती है ये आस पास की भूमि से सहसा ऊपर उठे होते है. इनका धरातल कठोर तथा चट्टानी होने के कारण कृषि के लिए अनुपयुक्त होता है, किन्तु ये खनिज संसाधनों में संपन्न होते है. तिब्बत तथा बोलीविया जैसे पठार पर्वतों से भी ऊँचे है. 


पर्वत (Mountain)

आसपास की भूमि से अत्यधिक ऊपर उठे भू-भाग पर्वत कहलाते है. ऊँचाई तथा निर्माण की विधि के अनुसार ये अत्यधिक महत्वपूर्ण होते है. इनमे से अधिकांश पृथ्वी की धीमी आंतरिक गतियों से उत्पन्न होते है, जिन्हें पटल विरुपंकारी गतियाँ कहा जाता है. ये गतियाँ पृथ्वी के आतंरिक भाग में उत्पन्न होती है. पर्वत मुख्यत: चार प्रकार के होते है.


वलित पर्वत (Fold Mountain)

ये विश्व के विशालतम तथा उच्चतम पर्वत है. ये पृथ्वी की आतंरिक शक्तियों द्वारा बडें पैमाने पर होने वाले वलन क्रिया से उत्पन्न होते है. ये शक्तियां क्षेतिज गतियों को उत्पन्नं करती है. एशिया में हिमालय तथा यूरोप में आल्पस वलित पर्वतों के सर्वोत्तम उदाहरण है.


ब्लॉक पर्वत (Block Mountain)

ये पर्वत ज्वालामुखीय उद्गारों से निर्मित होते है. जब किसी ज्वालामुखी का विस्फोट होता है तो उसमें से किसी छिद्र या मुख से पिघले हुए पदार्थ निकलते है, जो कालांतर में ठंडे होकर छिद्र के निकट एक शंकु की आकृति में जम जाते है. जापान का फ्यूजीयामा पर्वत ज्वालामुखी पर्वत का सर्वोत्तम उदाहरण है.


अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountains Earth Movement Information)

ये पर्वत अपक्षय, नदियों आदि द्वारा अपरदन में उत्पन्न होते है. ये बाह्रा शक्तियाँ धरातल को काट-छाट देती है जिससे पृथ्वी का धरातल अत्यधिक विच्छेदित (कटा-फटा) हो जाता है.


पृथ्वी की गतियाँ एवं उत्पन्न स्थलरुप (Earth Movement Information)

स्थलरूपों में निरंतर परिवर्तन होता रहता है. अनेक आंतरिक बाह्रा शक्तियां तथा प्रक्रियाए वर्तमान स्थलाकृति में परिवर्तन करती रहती है. ये परिवर्तन धीरे धीरे या अदृश्य रूप से तथा अचानक दोनों प्रकार से होते है. धीमे परिवर्तनों को हम अपने जीवनकाल में देख तथा अनुभव नहीं कर पाते है किन्तु आकस्मिक परिवर्तनों को सहज ही देखा जा सकता है. धीमी गतियों द्वारा आकार (लक्षण) बनते है. वलन (मोड़) तथा भ्रंश.

वलन (Folding)

पृथ्वी के भीतर धीमी गतियों के कारण धरातलीय शैलें मुड़ जाती है. जिनसे वलन उत्पन्न होते है. वलन का ऊपरी उठा हुआ भाग अपनति कहलाता है. जबकि भीतर धँसे हुए भाग को अभिनति कहा जाता है.


भ्रंश (Prolapse)

भूपटल पर अनेक विभंग या दरारें पाई जाती है. जिनके सहारे स्थलखंडों का विस्थापन होता है. शैल परतों में तनाव के कारण दरार उत्पन्न हो जाती है. जिससे भ्रंश विकसित होते है. शैलों के भ्रंशन तथा विस्थापन से अनेक प्रकार के विशिष्ट स्थलरुप विकसित होते है, जिनमे भ्रंश घाटी तथा भ्रन्शोंत्थ प्रमुख है.

भ्रंश घाटी (Prolapse Valley Earth Movement Information)

जब दो या अधिक समांनातर भ्रंशो के मध्य का स्थलखंड भू-भाग नीचे धँसता है तो घाटी के आकार की आकृति विकसित होती है जिसे भ्रंश घाटी कहते है.

भ्रंशोत्थ

जब दो या अधिक समानांतर भ्रंशो के मध्य का भाग ऊँचा उठ जाता है, तब भ्रंशो का निर्माण होता है जिसे ब्लॉक पर्वत भी कहा जाता है. फ्रांस के वाँसजेस तथा जर्मनी के ब्लैक फ़ॉरेस्ट पर्वत इसी प्रकार के ब्लॉक पर्वत है

ज्वालामुखी की जानकारी (Volcano Earth Movement Information)

लोग सामान्यत: ऐसा सोचते है कि जवालामुखी एक पर्वत होता है, जिससे लावा तथा अग्नि की ज्वालाओं का उद्गार होता है किन्तु वास्तव में ज्वालामुखी एक छिद्र या भूपटल में एक मुख होता है जिससे लावा, गैसें, भाप तथा ठोस चट्टानें बाहर निकलती है. कभी कभी लावा भूपटल की एक गहरी दरार से बाहर आता है और इस प्रकार बाहर निकला पदार्थ मुख के चारों और एकत्रित हो जाता है तथा बाद में कठोर होकर ज्वालामुखी पर्वत बनता है.

ज्वालामुखी (Volcano) की आकृति (Shape)

ज्वालामुखी की एक विशिष्ट आकृति होती है जिसका एक क्रेटर, ग्रीवा (नलिका) तथा शंकु होता है. वह गहरी दरार या नलिका जिससे होकर लावा बाहर आता है, ग्रीवा कहलाता है. प्याले की आकृति का मुख क्रेटर कहलाता है. तथा लावा का शंक्वाकार ढेर, जो जमकर एक पहाड़ी का रूप धारण कर लेता है, शंकु कहलाता है. लावा के उदगार होने तथा जमने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को ज्वालामुखी क्रिया Volcanic Action कहा जाता है.


जब तक उष्ण द्रवित पदार्थ पृथ्वी के धरातल के भीतर रहता है, तब तक उसे मेग्मा कहा जाता है. किन्तु जब यह मेग्मा पृथ्वी Magma Earth के धरातल पर आता है, तब इसे लावा कहते है. लावा का प्रवाह Lava Flow उसकी श्यानता या चिपचिपाहट तथा गाढ़ेपन पर निर्भर करता है.


मेग्मा में उपस्थित जल तथा सिलिका की मात्रा लावा के गाढ़ेपन को प्रभावित करती है. सिलिका की मात्रा अधिक होने पर लावा गाढ़ा होता है. जबकि जल की मात्र अधिक तथा सिलिका की मात्र कम होने पर लावा कम गाढ़ा होता है.

ज्वालामुखी क्रिया के कारण (Due to volcanic activity earth movement information)

ज्वालामुखी का उद्गार अनेक कारणों से होता है. हम जानते है कि पृथ्वी के धरातल के नीचे तापमान बढ़ने के कारण शैलें द्रवित अवस्था में होती है, जिसे लावा कहते है. जब वर्षा का जल समुद्री जल छिद्रों से होकर पृथ्वी के भीतरी भागो में पहुँचता है तो ऊष्मा वाष्प तथा गैस में बदल जाती है. जब कभी लावा तथा गर्म गैसों को कई कमजोर शैलों वाला या दरार या छिद्र मिल जाता है तो वे एक विस्फोट के साथ पृथ्वी के धरातल पर आ जाते है.


ज्वालामुखी के प्रकार (The type of  volcano earth movement information)

ज्वालामुखी अनेक प्रकार के होते है लेकिन क्रियाशीलता क आधार पर इन्हें तीन प्रकार में विभक्त कर सकते है.


सक्रिय ज्वालामुखी Active Volcano

सुप्त ज्वालामुखी Dormant Volcano

मृत ज्वालामुखी Dead Volcano


सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano)

ये ज्वालामुखी सदेव सक्रिय रहते है, अर्थात इनसे निरंतर उद्गार होते रहते है. विश्व में ५०० से भी अधिक सक्रिय ज्वालामुखी है. इनमे से अधिकांश प्रशांत महासागर के किनारे एक वलयकर पेटी में स्थित है, जिसे अग्नि वलय कहा जाता है. सिसली में माउंट एटना, जापान में फ्यूजीयामा तथा बंगाल की खाड़ी भारत में बेरन द्वीप सक्रिय ज्वालामुखी Active Volcano के कुछ उदाहरण है.

सुप्त ज्वालामुखी (Earth Movement Information Dormant Volcano)

ये वे ज्वालामुखी है जिनमें अतीत काम ले उद्गार हुआ था. अब वे शांत है, किन्तु उनमें कभी भी उद्गार हो सकता है. इटली में विसूवियस सुप्त ज्वालामुखी का उत्तम उदाहरण है. ये ज्वालामुखी बहुत हानिकारक होते है (The volcano is very harmful) क्योकि ये धोखे में रखते है. इनमें कभी भी विस्फोट हो सकता है तथा लोंगों को उसकी चेतावनी भी नहीं मिलती है. विसूवियस ज्वालामुखी में सर्वप्रथम ७९ ई में उद्गार हुआ था तथा यह १७०० वर्षों तक सुप्त अवस्था में रहा.

मृत ज्वालामुखी (Dead Volcano)

ये वे ज्वालामुखी है, जिनमे सुदूर अतीत में उद्गार हुआ था, किन्तु अब वे सक्रिय नहीं है. तथा भविष्य में भी इनके सक्रिय होने की कोई सम्भावना नहीं है. म्यांमार का माउंट पोपा इसी प्रकार का ज्वालामुखी है.


भूकंप (Earthquake)

शैलों की आकस्मिक गतियों तथा टूटने के फलस्वरूप पृथ्वी के धरातल Earth’s Surface का अचानक हिलना या काँपन भूकंप कहलाता है. यह भूकंप की लहर गति की ऊर्जा का एक स्वरुप है, जो भूपटल की लहर गति की ऊर्जा का एक स्वरुप है, जो भूपटल की परतों में से निकलती है. यह ऊर्जा जिस बिंदु पर उत्पन्न होती है, उसे भूकंप मूल की गहराई भूपटल के नीचे 10-700 किमी पर होती है. भूकंप का अध्ययन करने वाले विज्ञापन को भूकंप विज्ञान कहते है.


भूकंप की शक्ति (The power of the Earthquake )

भूकंप की तीव्रता को रिक्टर मापक पर नापा जाता है. इस मापक पर भूकंप की तीव्रता ०-९ के मध्य होती है. इस मापक में एक इकाई वृद्धि होने पर भूकंप की तीव्रता (शक्ति) में दस गुना वृद्धि होती है.


यह उल्लेखनीय तथ्य है कि पृथ्वी पर भूकंप के क्षेत्र कमजोर शैलों के क्षेत्रों से सम्बंध है. ज्वालामुखियों की सक्रियता वाले क्षेत्रों में अर्थात प्रशांत महासागर के किनारे स्थित अग्नि वलय में विनाशकारी भूकंप आते है.

भूकंपों का माप (The measurement of Earthquakes)

भारत के भूकम्पों की आवृति हिमालय तथा उसकी तलहटी एवं गंगा ब्रम्हापुत्र घाटी में सर्वाधिक मिलती है. असम उत्तरी बिहार, कश्मीर, उत्तराखंड तथा कच्छ में सर्वाधिक तीव्रता वाले भूकंप आते है. जब तक कोयला नगर में (१९६७ ई) भूकंप नहीं आया था, तब तक दकन के पठार को प्राय: भूकंपरहित क्षेत्र माना जाता था. २६ जनवरी २००१ जी भुज गुजरात में भी भीषण भूकंप आया, जिसमे ३०००० लोग मारे गए थे.

भूकंपों के प्रभाव (The impact of Earthquakes)

यद्यपि भूकंप मात्र कुछ सेकंड के लिए आता है, तथापि यह पृथ्वी पर सर्वाधिक शक्तिशाली शक्तियों में गिना जाता है. एक तीव्र भूकंप से इतनी ऊर्जा बाहर निकलती है, जो परमाणु बम की ऊर्जा से १०००० गुना अधिक होती है.


भूकंप के विनाशकारी प्रभाव निम्नलिखित है.


इमारते, सड़के, पुल तथा अन्य संरचनाए क्षतिग्रस्त तथा नष्ट हो जाती है.

बिजली के तारों में आग लगने से भयंकर हानि होती है.

खतरनाक रसायनों के बिखरने से भी बहुत हानि होती है.

जन जीवन की बहुत हानि होती है.

नदियों के मार्ग बदल जाते है.

पर्वतीय क्षेत्रों से भूस्खलनों से हानि होती है.

अध: सागरीय भूकंपीय तरंगे, जिन्हें “सूनामी” कहा जाता है, अत्यंत हानिकारक होती है.

 


  • महत्वपूर्ण तथ्य Key Facts
  • पर्वत, पठार तथा मैदान तीन प्रमुख स्थलरुप है.
  • भूगर्भ में उत्पन्न होने वाली धीमी गतियों के परिणामस्वरूप अधिकांश पर्वत उत्पन्न होते है.
  • पर्वत मुख्यत: चार प्रकार के होते है. वलित, ब्लॉक, ज्वालामुखी तथा अवशिष्ट.
  • पठार पर्वत एवं मैदानों के मध्य स्थित होते है तथा आस पास की भूमि से एकाएक ऊपर उठे हुए होते है.
  • मैदान चौरस निम्न भूमि होते है. ये अधिकांशत: नदियों द्वारा लाये गए जलोढ़ से निर्मित होते है.
  • पृथ्वी की आतंरिक एवं बाह्रा शक्तियों तथा गतियों के कारण स्थलरूपों में निरंतर परिवर्तन होते रहते है.
  • आंतरिक शक्तियाँ मंद तथा आकस्मिक होती है.
  • मंद गतियों से वलन तथा भ्रंश पड़ते है.
  • भ्रंशन क्रिया से भ्रंश घाटी तथा भ्रंशोत्थ पर्वत बनते है.
  • आकस्मिक गतियों से ज्वालामुखी तथा भूकंप उत्पन्न होते है.
  • ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते है. सक्रिय, सुप्त तथा मृत.
  • भूकंप पृथ्वी Earthquake में गहराई पर स्थित भूकंप मूल में उत्पन्न होते है.
  • भूकंप पृथ्वी Earthquake के कमजोर क्षेत्रों से सम्बंधित होते है.
  • ज्वालामुखी उदगार तथा भूकंप मानव के लिए अत्यंत विनाशकारी है.

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