तिलक क्यों लगायें ? जानिए तिलक का महत्व को
भारतीय संस्कृति में तिलक का महत्व सर्वविदित है. प्रतिदिन प्रात: काल स्नान के उपरांत मंदिर जाकर या किसी विशेष धार्मिंक अवसर पर चंदन का तिलक लगाने की परम्परा प्राचीन है. तिलक को हम मस्तक पर दोनों भोहों के बीच और नासिका के प्रारम्भिक स्थल पर लगाते है जो कि हमारे चिन्तन मनन का स्थान माना गया है. यह चेतन और अवचेतन दोनों अवस्थाओं में सक्रिय रहता है. इसे आज्ञा चक्र भी कहते है. ऐसी मान्यता है कि विचार स्फुटित करने वाले इस बिंदु पर यदि शुभ और सोभाग्यवर्धक द्रव्य जैसे केसर, चंदन अथवा कुमकुम का तिलक लगाया जाए तो यह शुद्ध, सात्विक और तेजपूर्ण हो जाता है.
आज्ञा चक्र के एक और दायी भोह के नीचे असि नाड़ी होती है, जो पूर्व जन्म के पापों की निवारक है तथा दूसरों और बायीं भोंह के नीचे वर्णा – नाडी है. जो इन्द्रियकृत दोषों की नाशक है, इन दोनों नाड़ियों के संगम बिंदु पर स्थित आज्ञा चक्र को निर्मल और विवेकशील बनाये रखने के उद्देश्य से यह प्रथा प्रारंभ हुई.
किसी शुभ अवसर पर तिलक लगाते समय यह भावना रहती है कि प्रत्येक कार्य करते समय मेरा धार्मिक सद्भाव बना रहे. मैं अपना प्रत्येक कार्य न्यायपूर्वक करूँ. यदि हम कुछ समय के लिए यह बात भूल भी जाते है तो अपने या दूसरे के माथे पर लगे तिलक को देखकर हमें अपना संकल्प याद आ जाता है, जो नकारात्मक प्रवृतियों से हमारा बचाव करता है. इस तरह तिलक हम विशेष अवसर की स्मृति से जोड़े रखने में सहायक होता है. तिलक धारण करने वाला दूसरे में एवं स्वयं में भी देवत्व की भावना का संचार करता है. तिलक हमारे माथे को शीतलता देकर हमारी रक्षा करता है और ऊर्जा की हानि होने से रोकता है. फलस्वरूप आत्मविश्वास की वृद्धि के साथ ही, मन निर्मल व सत्पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित होता है.