पृथ्वी की आतंरिक संरचना (The Interior Structure of The Earth Information in Hindi)
पृथ्वी की आंतरिक भोतिक संरचना के बारे में जानिए, काल्पनिक तौर पर और वैज्ञानिको के द्वारा किये गए गहन अध्ययन से पृथ्वी के Interior Structure के बारे में आपको बताया गया है.
तरंगे की जानकारी Waves Information in Hindi
पृथ्वी की आतंरिक संरचना के विषय में हम बहुत कम जानते है क्योकि हमारी सभी क्रियाए पृथ्वी की सतह (स्थलमंडल) हमारे चारों और की वायु (वायुमंडल) तथा जलमंडल तक ही सीमित है. पृथ्वी की आंतरिक संरचना Interior Structure के विषय में हमारा ज्ञान अप्रत्यक्ष स्त्रोतों से प्राप्त होता है. इसका सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत भूकम्पीय तरंगे या सीस्मिक तरंगे है. ये तरंगे भूकंप के उद्गम केंद्र (EPICENTER) से उत्पन्न होती है. ये पृथ्वी के धरातल की और विभिन्न दिशाओं में चलती है. इन तरंगो की गति उन पदार्थों की प्रकृति पर निर्भर होती है जिनसे होकर ये गुजरती है. सीस्मिंक तरंगे दो प्रकार की होती है पी तरंगे (प्राथमिक तरंगे) तथा एस तरंगे (गौण तरंगे)
भू-पर्पटी की जानकारी Earth’s Crust Interior Structure Information in Hindi
इन तरंगो के अध्ययन से हमें पृथ्वी की आतंरिक संरचना के विषय में जानकारी मिलती है. एक पतली ठोस परत पृथ्वी को बाहर से घेरे हुए है. इस परत को भू-पर्पति (Crust) कहते है. इस परत की मोटाई विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है. समुद्र की तलहटी का निर्माण करने वाली भू-पर्पटी प्राय: ४ से ७ किमी मौटी होती है.
जबकि महाद्वीपों की भू-पर्पटी औसत रूप से ३५ किमी मोटी होती है. कुछ शेलें और मुद्रा इस भू-पर्पटी की सबसे ऊपरी परत का निर्माण करती है. यदि हम पृथ्वी की तुलना एक सेब से करे तो भू-पर्पटी का भाग सेब के छिलके के समान मोटा होगा.
पृथ्वी की भू-पर्पटी पर प्रचुरता से पाए जाने वाले स्थल मंडल के कुछ तत्व है. आक्सीजन (O), सिलिकन (SI) यानी बालू, एलुमिनियम (AI) और लोहा (FE). भू-पर्पटी के शैले में लगभग २००० विभिन्न प्रकार के खनिज मिलते है.
भू-पर्पटी की महाद्वीपीय सतह का निर्माण मुख्य रूप से सिलिका (Silica) एवं एलुमिनियम (Aluminia) से हुआ है. अत: इसे सिआल (SIAL, SI=Silica एवं Al = Alumina) कहा जाता है. समुद्री परत का निर्माण मुख्य रूप से सिलिका (Silica) और मिग्निशियम (Magnesium) से हुआ है. अत: इसे सिमा (SIMA), Si = Silica एवं Ma = Magnesium कहा जाता है.
भू-पर्पटी के नीचे एक बहुत अधिक मोटी परत पाई जाती है, जिसे मेंटल (Mentle) कहते है. मेंटल २९०० किमी गहराई तक पाया जाता है. मेंटल का ऊपरी १०० किमी तक का भाग ऊपरी मेंटल कहलाता है. १०० किमी से अधिक गहराई वाले भाग को निचला मेंटल कहते है. यह सघन तथा दृढ़ शैलो से निर्मित होता है. इसमें मैग्नेशियम तथा लोहे जैसे खनिजों की अधिकता है.
पृथ्वी का सबसे भीतरी भाग क्रोड़ (Core) कहलाता है. इसका अर्धव्यास ३,४७० किमी है. इसे भी दो भांगो में बाँटा जाता है. बाह्रा क्रोड़ तथा आंतरिक क्रोड़. यह भाग निकिल (NI) तथा लोहा (FE) जैसी भारी धातुओं से बना है. इसलिए इसे नाफे (NIFE) कहते है. पृथ्वी के अंतरतम भाग में तापमान एवं वायुदाब दोनों ही अधिक है.
पृथ्वी के केंद्र तक पहुँचने के लिए हमें समुद्र की सतह से लगभग ६००० किमी गहरा गड्ढा खोदना होगा, जो संभव नहीं है. दक्षिण अफ्रीका में सबसे गहरी खान लगभग ४ किमी गहरी है. खनिज तेल की खोज में इंजीनियरों ने लगभग ६ किमी गहरी खुदाई की है.
शैलें चट्टानों एवं खनिज Interior Structure Shell Rocks and Minerals
आपने देखा कि पृथ्वी की सतह विभिन्न प्रकार की चट्टानों से बनी है. शैलें या चट्टाने खनिजों के मिश्रण से बने ठोस पदार्थ है जिनसे पृथ्वी की सतह का निर्माण हुआ है.
शैलें विभिन्न रंगों तथा आकारों की होती है. जिन पदार्थो से यह शैलें बनती है उनके कुछ विशेष गुण होते है जिनके आधार पर उन्हें पहचाना जा सकता है. शैलें का निर्माण करने वाले ये पदार्थ ही खनिज है.
शैलों के प्रकार Types of Rocks Interior Structure
आपने देखा कि शैल, खनिजो के मिश्रण से बना ठोस पदार्थ है. ये विभिन्न आकृतियों, आकारों तथा रंगों में पाई जाती है. कुछ शैलें अधिक सघन होती है तथा कुछ अपेक्षाकृत अधिक कठोर. पृथ्वी की भू-पर्पटी पर विविध प्रकार की शैलें पाई जाती है.
भू-विज्ञापनों ने शैलों को उनके निर्माण के आधार पर तीन मुख्य वर्गो में बिभक्त किया है. आग्नेय (Igneous) अवसादी (Sedimentary) तथा रूपांतरित (Metamorphic)
आग्नेय शैलें Igneous Interior Structure
आग्नेय शैलें का निर्माण मेग्मा नामक पिघले पदार्थ के ठन्डे होने और लावे के रूप में जमा होने से होता है. आग्नेय शब्द का अर्थ है. आग से निकलने वाला. ठंडा होने तथा जमकर ठोस होने की क्रिया धरातल के नीचे तथा धरातल के ऊपर भी हो सकती है. आग्नेय शैलें को प्राय: प्राथमिक शैल भी कहा जाता है. क्योकि अन्य सभी शैलें अंत: आग्नेय शैलों से बनती है. ये पृथ्वी को भू-पर्पटी का विशाल भाग घेरे हुए है.
धरातल के निचे रूप धारण करने वाले आग्नेय शैल को अंतवेंधी आग्नेय शैल (Intrusive Igneous Rock) कहा जाता है. ग्रेनाईट तथा गेब्रो इस प्रकार की शैलों के उदहारण है. जब आग्नेय शैल धरातल के ऊपर बनती है. तब इन्हें बहीबेर्धि आग्नेय शैल (Extrusive Igneous Rock) कहा जाता है. बैसाल्ट तथा रह्योलाईट ऐसी शैलों के उदाहरण है भारत का दक्षिण पठार बेसाल्ट का बना है.
अवसादी शैलें Sedimentary Rocks Interior Structure
अपने निर्माण के साथ ही आग्नेय शैलें अपक्षय तथा बहते हुए जल, पवन, हिमानी या समुद्री लहरों द्वारा अपरदन से प्रभावित होने लगती है. बहता हुआ जल अपरदन का मुख्य कारक है. नदियाँ अपने प्रवाह के साथ अपेक्षित शैल के छोटे – छोटे टुकड़े बहाकर ले जाती है. इन शैलों के टुकड़ों तथा घुले हुए खनिजों को नदी का भर कहते है, जिन्हें नदियाँ अपनी तलहटियों और घाटियों में निपेक्षित करती है. इन निक्षेपों को अवसाद कहते है. ये अवसाद धीरे धीरे परतों के रूप में एकत्रित होते है. दबाब के कारण ये परतें दबकर एक दुसरे पर जम जाती है. जो अंत: शैलें बन जाती है. इन परतदार शैलों को अवसादी शैल कहते है. बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, शैल ग्रेवल, चिकनी मिट्टी तथा कांग्लोमरेट शैलों के उदहारण है. कभी-कभी जीव-जंतुओं और पेड पौधों के अवशेष भी अवसादी शैलों की परतों में दब जाते है. इन्हें जीवाश्म कहते है. कोयला, खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस इन्हीं शैलों में पाए जाते है, जिन्हें जीवाश्म ईधन कहा जाता है. आधुनिक समाज ऊर्जा के प्रमुख स्त्रोतों के रूप में इनका प्रयोग करता है जिनके अत्यधिक प्रयोग से प्रदूषण में वृद्धि होती है, जो विश्वव्यापी चिंता का विषय है.
रूपांतरित शैलें Metamorphic Rock Interior Structure
दबाव तथा ताप के कारण आग्नेय तथा अवसादी शैलों के स्वरुप, गुणों तथा विशेषताओं में भी अंतर आ जाता है. परिवर्तन की इस प्रक्रिया को रूपांतरण कहते है. इस प्रक्रिया से निर्मित शैल को रूपांतरित शैल कहते है. उदाहरण के लिए, शैल स्लेट में बदल जाती है, चुना पत्थर संगमरमर में बदल जाता है, कोयला हीरे में बदल जाता है. तथा बलुआ पत्थर क्वाटरजाइट में बदल जाता है.
शैल चक्र Shell Circle Interior Structure
आपने देखा कि आग्नेय शैलें अवसादी शैलों में परिवर्तित होती है तथा आग्नेय एवं अवसादी शैलें रूपांतरित शैलों में परवर्तित होती है. रूपांतरित शैलें भी आग्नेय तथा अवसादी शैलों की भाति अपक्षय तथा अपरदन के कारण परिवर्तित हो जाती है और अवसादी शैलों का निर्माण करती है. रूपांतरित शैलें जिन पर ताप और दबाव लगातार पड़ता रहता है, पिघलकर मेग्मा बन जाती है. और यह मेग्मा फिर ठंडा होकर आग्नेय शैलों का रूप ले लेता है. इस प्रकार एक शैल का अन्य प्रकार की शैलों में लगातार परिवर्तन होता रहता है, जिए शैल चक्र कहते है.
महत्वपूर्ण तथ्य Key Facts Interior Structure
- पृथ्वी की आतंरिक संरचना Interior Structure के विषय में हमें ज्ञान अप्रत्यक्ष स्त्रोतों से प्राप्त होता है. इसका सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत भूकंपीय तरंगे या सिस्मिक तरंगे है.
- एक पतली ठोस परत पृथ्वी को बाहर से घेरे हुए हुए है. इस परत को भू-पर्पटी (Crust) कहते है. इस परत की मौटाई समुद्र में ४ से ७ किमी तथा महाद्वीपों में औसतन ३५ किमी होती है.
- भू-पर्पटी के निचे एक बहुत मौटी परत पाई जाती है, जिसे मेंटल (Mentle) कहते है. मेंटल २९०० किमी गहराई तक पाया जाता है.
- पृथ्वीं का सबसे भीतरी बाग़ क्रोड़ (Core) कहलाता है. पृथ्वी के अंतरतम भाग में तापमान एवं वायुदाब दोनों ही बहुत अभिक है.
- आग्नेय शैलों का निर्माण मेग्मा नामक पिघले पदार्थ के ठन्डे होने और लावे के रूप में जमा होने से हुआ है. आग्नेय शैलें अंतब्रेधि (Intrusive) तथा बहिब्रेधि (Extrusive) दो प्रकार की होती है. अंतब्रेधि आग्नेय शैलों के उदाहरण है. ग्रेनाईट एवं ग्रेब्रो तथा बहिब्रेधि आग्नेय शैलों के उदाहरण है – बेसाल्ट एवं रह्योलाइट.
- आग्नेय शैले अपक्षय ततः अपरदन के कारण अवसादी शैलों में परिवर्तित जो जाती है. अवसादी शैलों के उदहारण है. बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, शैल ग्रेवल, चिकनी मिट्टी तथा कान्ग्लो मरेट दाब तथा ताप के कारण आग्नेय एवं अवसादी शैलें रूपांतरित शैलों में परिवर्तित हो जाती है. जैसे शैले स्लेट में, चूना पत्थर संगमरमर में, कोयला हीरे में तथा बलुआ पत्थर क्वाटजाइट में बदल जाते है.
- एक प्रकार की शैल का दूसरे प्रकार की शैल में निरंतर परिवर्तन प्राकृतिक क्रिया है इस प्रक्रिया को शैल चक्र कहा जाता है.