सम्राट अशोक सामान्य ज्ञान General Knowledge

Lavakush Kumar
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सम्राट अशोक

बिन्दुसार का उत्तराधिकारी सम्राट अशोक महान हुआ जो २६९ ई पू में मगध की राजगद्दी पर बैठा.

राजगद्दी पर बैठने के समय अशोक अवंती का राज्यपाल था.

मास्की और गुर्जरा अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है.


पुराणों में सम्राट अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है.

अशोक ने अपने अभिषेक के आठवे वर्ष लगभग २६१ ई पू कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया.

प्लिनी का कथन है कि मिस्र का राजा फिलाडेलफ्स ने पाटलिपुत्र में डीयानीसियस नाम का एक राजदूत भेजा था.

उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बोद्ध धर्म की दीक्षा दी.

सम्राट अशोक ने आजिवकों को रहने हेतु बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण करवाया है जिनका नाम कर्ज, चोपार, सुदामा तथा झोपडी था.

सम्राट अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था.

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा.

भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया.

सम्राट अशोक के शिलालेखों में ब्राही, खरोष्ठी, ग्रीक और अरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है.

ग्रीक और अरमाइक लिपि का अभिलेख अफगानिस्तान से, खरोष्ठी लिपि का अभिलेख उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान से और शेष भारत से ब्राही लिपि के अभिलेख मिले है.

अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बाटा जा सकता है. पहला – शिलालेख, दूसरा – स्तम्भ्लेख, तीसरा – गुहालेख.

अशोक के शिलालेख की खोज १७५० ई में पाद्रेटी फेनथेलर ने की थी. इनकी संख्या १४ है.

अशोक के अभिलेख पढने में सबसे पहली सफलता १८३७ ई में जेम्स प्रिसेप को हुई.


सम्राट अशोक General Knowledge

 

सम्राट अशोक के प्रमुख शिलालेख और उनमे वर्णित विषय

पहला शिलालेख – इसमें पशुबलि की निंदा की गई है.

दूसरा शिलालेख – इसमें अशोक ने मनुष्य और पशु दौनो की चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख किया है.

तीसरा शिलालेख – इसमें राजकीय अधिकारीयों को यह आदेश दिया गया है कि वे हर पाचवे वर्ष के उपरांत दौरे पर जाए. इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है.

चौथा शिलालेख – इस अभिलेख में भेरिघोष की जगह धम्म घौष की घौषणा की गई है.

पांचवा शिलालेख – इस शिलालेख में धर्म महामात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है.

छठा शिलालेख – इसमें आत्म नियंत्रण की शिक्षा दी गई है.

सातवाँ और आठवाँ शिलालेख – इनमे अशोक की तीर्थ यात्राओं का उल्लेख किया गया है.

नौवा शिलालेख – इसमें सच्ची भेट तथा सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख किया गया है.

दसवाँ शिलालेख – इसमें सम्राटअशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकांश हमेशा प्रजा के हित में सोंचे.

ग्यारहवाँ शिलालेख – इसमें धम्म की व्याख्या की गई है.

बारहवाँ शिलालेख – इसमें स्त्री महामात्रों की नियुक्ति और सभी प्रकार के विचारों सम्मान की बात कही गई है.

तेरहवा शिलालेख – इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन और अशोक के ह्रदय परिवर्तन की बात कही गई है.

चौदहवां शिलालेख – सम्राट अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया.

सम्राट अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या ७ है, जो केवल ब्राह्मी लिपि में लिखी गई है. यह अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुआ है.

प्रयाग स्तम्भ लेख – यह पहले कौशाम्बी में स्थित था. इस स्तम्भ लेख को अकबर इलाहाबाद के किले में स्थापित कराया.

दिल्ली टोपरा – यह स्तम्भ लेख फिरोजशाह तुगलक के द्वारा टोपरा से दिल्ली लाया गया.

दिल्ली मेरठ – पहले मेरठ में स्थित यह स्तम्भ लेख फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया है.

रामपुरवा – यह स्तम्भ लेख चम्पारण बिहार में स्थापित है. इसकी खोज १८७२ ई में कारलायल ने की.

लौरिया अरेराज – चम्पारण में.

लौरिया नंदनगढ़ – चम्पारण में इस स्तम्भ पर मोर का चित्र बना है.

 

कौशाम्बी अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है.

अशोक का सबसे छोटा स्तम्भ लेख रुम्मी देई है. इसी में लुम्बिनी में धम्म यात्रा के दौरान अशोक द्वारा भूराजस्व की दर घटा देने की घोषणा की गई है.

अशोक का ७वां अभिलेख सबसे लम्बा है.

प्रथम प्रथक शिलालेख में यह घोषणा है कि सभी मनुष्य मेरे बच्चे है.

अशोक का शार ए कुना – कंदहार अभिलेख ग्रीक एवं आम्रेइक भाषाओँ में प्राप्त हुआ है.

साम्राज्य में मुख्यमंत्री और पुरोहित की नियुक्ति के पूर्व इनके चरित्र को काफी जाँचा परखा जाता था जिसे उपधा परिक्षण कहा जाता था.

सम्राट की सहायता की लिए एक मन्त्रिपरिषद होती थी जिसमे सदस्यों की संख्या १२ से १६ या २० हुआ करती थी.

अर्थशास्त्र में शीर्षस्थ अधिकारी के रूप में तीर्थ का उल्लेख मिलता है, जिसे महामात्र भी कहा जाता था. इसकी संख्या १८ थी. अर्थशास्त्र में चर जासूस को कहा जाता है.

अशोक के समय मौर्य साम्राज्य में प्रान्तों की संख्या ५ थी. प्रान्तों को चक्र कहा जाता था.

प्रान्तों के प्रशासक कुमार या आर्यपुत्र या राष्ट्रिक कहलाते थे.

प्रान्तों का विभाजन विषय में किया गया था. जो विषय पंती के अधीन होते थे.

प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, जिसका मुखिया ग्रामिक कहलाता था.

प्रशासको में सबसे छोटा गौप था, जो दस ग्रामो का शासन सम्भालता था.

मेगास्थनीज के अनुसार नगर का प्रशासन ३० सदस्यों का एक मंडल करता था जो ६ समितियो में विभाजित था. प्रत्येक समिति में ५ सदस्य होते थे.

 

मौर्य प्रांत – उत्तरापथ

राजधानी – तक्षशिला

 

मौर्य प्रांत – अवन्ती राष्ट्र

राजधानी – उज्जयिनी

 

मौर्य प्रांत – कलिंग

राजधानी – तोसली

 

मौर्य प्रांत – द्क्षिनापथ

राजधानी – सुवर्णागिरी

 

मौर्य प्रांत – प्राशी पूर्वी प्रान्त

राजधानी – पाटलिपुत्र

 

अर्थशास्त्र में वर्णित तीर्थ के बारे में जानकारी

मंत्री – प्रधानमन्त्री

पुरोहित – धर्म और दान विभाग का प्रधान

युवराज – राजपुत्र

दोवारिक – राजकीय द्वारा रक्षक

अंतवेदिक – अंत:पुर का अध्यक्ष

समाहर्ता – आय का संग्रहकर्ता

सन्निधाता – राजकीय कौष का अध्यक्ष

प्रशास्ता – कारागार का अध्यक्ष

प्रदेष्ट्री – कमिश्नर

पौर – नगर का कोतवाल

व्यावहारिक – प्रमुख न्यायाधीश

नायक – नगर रक्षा का अध्यक्ष

कर्मान्तिक – उद्योगों और कारखानों का अध्यक्ष

मंत्रीपरिषद – अध्यक्ष

दुर्गपाल – दुर्ग रक्षक

अन्तपाल – सीमावर्ती दुर्गो का रक्षक

 

प्रशासनिक समिति और उसके कार्य

समिति – प्रथम

कार्य – उद्योग और शिल्प कार्य का निरिक्षण

 

समिति – द्वितीय

कार्य – विदेशियों की देखरेख

 

समिति – तृतीय

कार्य – जन्म मरण का विवरण रखना

 

समिति – चतुर्थ

कार्य – व्यापार और वाणिज्य की देखभाल

 

समिति – पंचम

कार्य – निर्मित वस्तुओ के विक्रय का निरिक्षण

 

समिति – षष्ठ

कार्य – बिक्री कर वसूल करना

 

बिक्री कर के रूप में मूल्य का १०वा भाग वसूला जाता था, इसे बचाने वालों को मृत्युदंड दिया जाता था.

मेगास्थनीज के अनुसार एग्रोनोमाई मार्ग निर्माण अधिकारी था.

जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में लगभग ५०००० अश्वारोही सेनिक ९०० हाथी और ८००० रथ थे.

प्लूटार्क जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त ने नंदों की पैदल सेना से तीन गुनी अधिक संख्या अर्थात ६०००० आदमियों को लेकर सम्पूर्ण उत्तर भारत को रौंद डाला था.

युद्ध क्षेत्र में सेना का नेतृत्व करनेवाला अधिकारी नायक कहलाता था.

सैन्य विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी सेनापति होता था.

मेगास्थनीज के अनुसार मौर्य सेना का रखरखाव ५ सदस्यीय छह समितियाँ करती थी.

मौर्य प्रशासन में गुप्तचर विभाग महामात्य सर्प नामक अमात्य के अधीन था.

अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढ़ पुरुष कहा गया है. तथा एक ही स्थान पर रहकर कार्य करनेवाले गुप्तचर को संस्था कहा जाता था.

एक स्थान से दुसरे स्थान पर भ्रमण करके कार्य करनेवाले गुप्तचर को संचार कहा जाता था.

अशोक के समय जनपदीय न्यायालय के न्यायाधीश को राजूक कहा जाता था.

सरकारी भूमि को सीता भूमि कहा जाता था.

बिना वर्षा के अच्छी खेती होने वाली भूमि को अदेवमातृक कहा जाता था.

मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभाजित किया है.

पहला – दार्शनिक

दूसरा – किसान

तीसरा – अहीर

चौथा – कारीगर

पाचवा – सैनिक

छठा – निरीक्षक

सातवा – सभासद

 

स्वतंत्र वेश्यावृत्ति को अपनाने वाली महिला रूपाजीवा कहलाती थी.

नन्द वंश के विनाश करने में चन्द्रगुप्त मौर्य ने कश्मीर के राजा पर्वतक से सहायता प्राप्त की थी.

मौर्य शासन १३७ वर्षो तक रहा.

मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्र्थ था. इसकी हत्या इसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने १८५ ई पू में कर दी और मगध पर शुंग वंश की नीव डाली.

 

सेन्य समिति और उनके कार्य

सिमित – प्रथम

कार्य – यातायात और रसद की व्यवस्था

 

सिमित – तृतीय

कार्य – पैदल सैनिको की देख रेख

 

सिमित – चतुर्थ

कार्य – अश्वारोहियों की सेना की देख रेख

 

सिमित – पंचम

कार्य – जग्सेना की देख रेख

 

सिमित – षष्ठ

कार्य – रथसेना की देख रेख

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